पैर के फ्रैक्चर में फीमर (जांघ की हड्डी), टिबिया (पिंडली की हड्डी), फिबुला (टिबिया के बगल में छोटी हड्डी) या इन हड्डियों का संयोजन शामिल हो सकता है।
पैर के फ्रैक्चर के प्रकार:
- ऊरु अस्थिभंग: ऊरु अस्थिभंग, जो शाफ्ट में या समीपस्थ या दूरस्थ सिरे पर हो सकता है।
- टिबियल फ्रैक्चर: टिबिया का फ्रैक्चर, जिसमें शाफ्ट या समीपस्थ या दूरस्थ सिरे शामिल हो सकते हैं।
- फाइबुलर फ्रैक्चर: फाइबुला का फ्रैक्चर, जो अक्सर टिबियल फ्रैक्चर के साथ होता है।
कारण:
- आघात: गिरना, सीधा प्रभाव, खेल संबंधी चोट, या मोटर वाहन दुर्घटनाएँ।
- अति प्रयोग: पैर की हड्डियों पर बार-बार तनाव या खिंचाव, जो एथलीटों में आम है।
- पैथोलॉजिकल: ऑस्टियोपोरोसिस या अस्थि ट्यूमर जैसी स्थितियों के कारण कमजोर हड्डियां।
सर्जरी के प्रकार और उनकी आवश्यकता कब होती है:
- ओपन रिडक्शन इंटरनल फिक्सेशन (ओआरआईएफ): फ्रैक्चर हुई हड्डियों को फिर से संरेखित करने और उन्हें प्लेट, स्क्रू या रॉड से सुरक्षित करने की सर्जिकल प्रक्रिया। विस्थापित या अस्थिर फ्रैक्चर के लिए इसकी आवश्यकता होती है।
- इंट्रामेडुलरी नेलिंग: फ्रैक्चर को स्थिर करने के लिए हड्डी के खोखले केंद्र में धातु की छड़ डालना। आमतौर पर टिबियल शाफ्ट फ्रैक्चर के लिए उपयोग किया जाता है।
- बाह्य स्थिरीकरण: बाहरी फ्रेम से जुड़े पिन या स्क्रू का उपयोग करके फ्रैक्चर को अस्थायी रूप से स्थिर करना। नरम ऊतक की चोट के साथ गंभीर फ्रैक्चर में उपयोग किया जाता है।
सर्जरी के लिए आवश्यक समय:
- सर्जरी की अवधि फ्रैक्चर की जटिलता और चुनी गई प्रक्रिया पर निर्भर करती है। आम तौर पर, पैर के फ्रैक्चर के लिए सर्जरी में कई घंटे लग सकते हैं।
प्रक्रियाओं के प्रकार:
- ओआरआईएफ: इसमें चीरा लगाना, टूटी हुई हड्डियों को संरेखित करना, तथा प्लेट, स्क्रू या छड़ जैसे हार्डवेयर की सहायता से उन्हें अपने स्थान पर स्थिर करना शामिल है।
- इंट्रामेडुलरी नेलिंग: इसमें फ्रैक्चर को स्थिर करने के लिए हड्डी के खोखले केंद्र में एक धातु की छड़ डाली जाती है।
- बाह्य स्थिरीकरण: इसमें फ्रैक्चर के ऊपर और नीचे की हड्डी में पिन या स्क्रू लगाना और उन्हें बाहरी फ्रेम से जोड़ना शामिल है।
पैर के फ्रैक्चर की सर्जरी में प्रयुक्त नवीनतम तकनीक:
- न्यूनतम आक्रामक तकनीकें: छोटे चीरे और विशेष उपकरण ऊतक क्षति, शल्यक्रिया के बाद होने वाले दर्द और रिकवरी के समय को कम करते हैं।
- इंट्राऑपरेटिव इमेजिंग: फ्लोरोस्कोपी या सीटी स्कैन सर्जरी के दौरान फ्रैक्चर में सटीक कमी और हार्डवेयर प्लेसमेंट में सहायता करते हैं।
सर्जरी के बाद सावधानियां:
- स्थिरीकरण: शल्य चिकित्सक द्वारा निर्धारित अनुसार पैर को प्लास्टर, स्प्लिंट या ब्रेस में रखना।
- भार वहन संबंधी प्रतिबंध: ठीक हो रही हड्डियों पर अधिक दबाव डालने से बचने के लिए भार वहन संबंधी निर्देशों का पालन करना।
- भौतिक चिकित्सा: शक्ति, गति की सीमा और कार्यक्षमता को पुनः प्राप्त करने के लिए निर्धारित पुनर्वास कार्यक्रम का पालन करना।
सर्जरी के बाद ठीक होने में लगने वाला समय:
- रिकवरी का समय फ्रैक्चर की गंभीरता, चुनी गई सर्जिकल प्रक्रिया और व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य पर निर्भर करता है।
- पूर्ण कार्यक्षमता प्राप्त करने और सामान्य गतिविधियों पर लौटने में कई सप्ताह से लेकर महीनों तक का समय लग सकता है।
फायदे और नुकसान:
लाभ:
- सर्जरी फ्रैक्चर को स्थिर करती है, उचित उपचार को बढ़ावा देती है, तथा नॉनयूनियन या मैल्यूनियन जैसी जटिलताओं के जोखिम को कम करती है।
नुकसान:
- सर्जरी में संक्रमण, रक्तस्राव, तंत्रिका क्षति और हार्डवेयर विफलता जैसे जोखिम होते हैं। रिकवरी लंबी हो सकती है, और पुनर्वास चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इसके अतिरिक्त, सर्जरी के बाद गति या ताकत की सीमा में सीमाएं हो सकती हैं।
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